कुछ महीने बीत चुके थे। कमल काका अब जेल में थे, और पुलिस ने उनके खिलाफ पूरा चार्जशीट तैयार कर दिया था। स्कूल में सुरक्षा के नियम और सख्त हो चुके थे — हर कमरे में अधिकृत कैमरे लगाए गए थे, बच्चों के चेंजिंग रूम और वॉशरूम्स में अब महिला सुपरवाइजर की नियुक्ति की गई थी।
लेकिन सबसे बड़ा बदलाव हुआ था बच्चों के दिलों में।
अब वो पहले से ज्यादा जागरूक हो चुके थे। "गुड टच और बैड टच" सिर्फ एक किताब की बात नहीं रह गई थी — अब वो एक ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी थी।
रिया अब खुलकर हँसती थी। उसकी मुस्कराहट में आत्मविश्वास था।
विवेक अब सभी बच्चों के लिए एक हीरो जैसा बन गया था।
शालिनी मैम ने दोनों को स्कूल की “चाइल्ड सेफ्टी टीम” का हिस्सा बना दिया। अब हर महीने बच्चों के लिए सेफ्टी वर्कशॉप होती, जहाँ रिया और विवेक अपने अनुभव बाँटते, सवालों के जवाब देते, और सबसे ज़रूरी — अपने जैसे बच्चों को सिखाते कि डर को कैसे हराया जाए।
एक दिन स्कूल में "बाल अधिकार सप्ताह" मनाया जा रहा था।
मंच पर रिया खड़ी थी, सामने सैकड़ों बच्चे बैठे थे।
उसने माइक पकड़ा और धीमे स्वर में बोली:
"मैं एक समय बहुत डरती थी… सोचती थी कि अगर मैंने सच बोला, तो सब मेरा मज़ाक उड़ाएँगे या डाँटेंगे। लेकिन आज मैं जानती हूँ कि सच बोलना ही सबसे बड़ी ताकत है। अगर कोई आपको गलत तरीके से छुए, डराए, धमकाए — तो चुप मत रहिए। बोलिए। मम्मी-पापा, टीचर, दोस्त — कोई न कोई आपका साथ ज़रूर देगा।"
पूरे हॉल में तालियाँ गूंज उठीं।
विवेक भी मंच पर आया।
उसने बच्चों से कहा:
"हम बच्चे हैं, लेकिन कमजोर नहीं हैं। हम समझ सकते हैं कि कौन हमारा भला चाहता है और कौन बुरा। अगर हमें कुछ अजीब लगे, तो हमें बोलना चाहिए — तुरंत। कोई भी डर, किसी की धमकी, हमारे सच से बड़ी नहीं होती।"
उस दिन स्कूल के कई बच्चों ने पहली बार अपनी दिल की बातें खुलकर बताईं।
किसी ने बताया कि वो किसी रिश्तेदार की नजरों से डरता है,
तो किसी ने कहा कि उसके पड़ोसी अजीब सवाल करते हैं।
अब बच्चे चुप नहीं थे। अब बच्चे जागरूक थे।
🌱 एक नई शुरुआत क्या होती है?
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जब डर की जगह साहस लेता है।
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जब चुप्पी की जगह आवाज़ उठती है।
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जब अकेलेपन की जगह साथ मिलता है।
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और जब कोई बच्चा कह पाता है — "अब मैं कमजोर नहीं, समझदार हूँ।"
रिया और विवेक की ज़िंदगी में यह एक नई शुरुआत थी —
दर्द की राख से निकले दो फूल, जो अब दूसरों को महका रहे थे।
सच बोलना, किसी पर भरोसा करना, और गलत के खिलाफ खड़ा होना — ये सब किसी जादू से कम नहीं।
हर बच्चा अपनी सुरक्षा खुद सीख सकता है अगर हम उन्हें समझने, बोलने और साथ देने का मौका दें।