कई बार लगता है जैसे ज़िंदगी ने हमारे लिए सिर्फ़ दुख और दर्द ही लिखा है। चारों तरफ़ अंधेरा, अकेलापन और टूटे हुए सपनों की आवाजें सुनाई देती हैं। हम मुस्कुराना चाहते हैं, पर दिल भारी हो जाता है। ऐसी ही एक कहानी है रवि की—एक आम इंसान, जिसकी ज़िंदगी भी आम नहीं रही।
रवि बचपन से ही संघर्षों में पला। पिता का साया सिर से जल्दी उठ गया, और माँ ने सिलाई करके उसे पढ़ाया। वह हमेशा कुछ बड़ा करना चाहता था, पर ज़िंदगी जैसे हर कदम पर उसे पीछे खींचती रही।
कॉलेज
में पहला प्यार हुआ, लेकिन दिल भी पहली बार टूटा।
जिस लड़की को वह अपना
सबकुछ मानता था, उसने सिर्फ़
मज़ाक समझा। रवि को पहली
बार महसूस हुआ कि दर्द
सिर्फ़ शरीर में नहीं, आत्मा में भी होता है।
फिर
एक के बाद एक
जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं—माँ बीमार
पड़ी, नौकरी नहीं मिली, दोस्तों
ने साथ छोड़ दिया।
ज़िंदगी जैसे हर मोड़ पर एक नया इम्तिहान देती रही।
रवि
अक्सर कहता,
"ज़िंदगी
ने मुझे कभी कुछ
दिया ही नहीं, बस
दर्द और आँसू दिए।"
वो टूट चुका था।
कई रातें ऐसे बीतीं जब
उसने खुद से पूछा—“क्या मेरा होना ही ग़लत है?”
लेकिन
एक दिन एक छोटी
सी घटना ने उसकी
सोच बदल दी।
रवि
रेलवे स्टेशन पर अकेला बैठा
था, जब उसने एक
बूढ़े आदमी को ठंड
में कांपते हुए देखा। बिना
सोचे उसने अपना जैकेट
उसे दे दिया। वो
बूढ़ा मुस्कराया और बोला,
“बेटा, खुद को मत खो, तू किसी के लिए रौशनी है।”
ये छोटी सी बात
जैसे उसकी रूह तक
उतर गई।
उस दिन रवि ने
सोचा—“अगर मेरी ज़िंदगी में दुख है, तो क्या मैं दूसरों को थोड़ी सी खुशी नहीं दे सकता?”
वहीं
से शुरुआत हुई एक नए
सफर की। रवि ने
छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू
किया, जो झुग्गियों में
रहते थे।
वह हर हफ्ते गरीबों
में खाना बाँटता, और
जितना हो सकता, उतनी
मदद करता।
धीरे-धीरे, वो दर्द कम
नहीं हुआ, पर उसका
मकसद बदल गया। अब
उसे पता था कि
"दर्द
बाँटने से नहीं, समझने और संभालने से कम होता है।"
रवि
की आँखों में फिर से
चमक लौट आई थी।
उसने दर्द से भागना
छोड़ दिया और उसे
अपनाया।
क्योंकि
ज़िंदगी हमें तकलीफ तो देती है, लेकिन उन्हीं तकलीफों से हम मजबूत बनते हैं।
ज़िंदगी
से सबक:
- दुख स्थायी नहीं होता – हर रात के बाद सुबह जरूर आती है।
- हमेशा किसी के लिए मायने रखते हैं – चाहे हम खुद को कितना ही अकेला समझें।
- छोटे काम भी बड़ा फर्क लाते हैं – किसी की मदद करना खुद को भी राहत देता है।
- दर्द से भागो नहीं, उसे समझो – तभी उसका असर कम होगा।
- खुद को समय दो – हर घाव को भरने में वक्त लगता है।
ज़िंदगी
हमेशा खुशियों से नहीं भरी
होती, लेकिन इसका मतलब यह
नहीं कि उसमें सिर्फ़
दर्द ही है। दुख
हमें गिराने नहीं, संभालने आते हैं।
रवि
की तरह अगर हम
भी अपने दर्द को
किसी की मदद में
बदल दें, तो शायद
ज़िंदगी हमें भी एक
नई वजह दे दे
मुस्कुराने की।
याद
रखो—
“ज़िंदगी
की सबसे बड़ी जीत, टूटकर भी मुस्कराने में है।”