"कुछ आत्माएं सिर्फ मुक्ति नहीं चाहतीं... वो विरासत छोड़ना चाहती हैं।"
🔥 आरव की वापसी... मगर बदला हुआ
तीन महीने बीत चुके थे। शिवपुर अब सामान्य था। हवेली खत्म हो चुकी थी। आत्मा को मुक्ति मिल चुकी थी।
लेकिन दिल्ली में आरव बदला-बदला सा रहने लगा था। उसके कमरे में हमेशा हल्की मोमबत्ती की खुशबू रहती। वह दिन में कम, रात में ज्यादा जागता।
नेहा: “आरव, तुम ठीक हो?”
आरव: (धीरे से मुस्कुराकर) “शायद… या शायद मैं अब वो हूँ ही नहीं जो पहले था।”
🧠 डर की वापसी
एक रात आरव के कमरे में नेहा गई। वो हॉल में बैठा था, पर मोमबत्ती की लौ उल्टी जल रही थी। दीवार पर एक छाया हिल रही थी, जबकि कोई पास नहीं था।
नेहा (डरते हुए): “ये… ये सब फिर से शुरू हो रहा है?”
आरव (धीरे से): “कुछ चीज़ें पूरी नहीं होतीं, नेहा। कुछ कहानियाँ… खुद को दोहराना चाहती हैं।”
🕵️♂️ सच्चाई का सामना
रितिक ने आरव की पुरानी रिकार्डिंग्स को स्कैन किया। उसमें एक नया फ्रेम मिला, जो पहले नहीं था — माया की आँखों में आरव की परछाई थी, लेकिन वो परछाई मुस्कुरा रही थी… माया नहीं।
रितिक: “ये... ये तू है ना? तू उसके अंदर था?”
आरव: (गंभीर आवाज़ में) “या शायद... वो मेरे अंदर आ चुकी थी।”
🔥आत्मा का उत्तराधिकारी
अब ये स्पष्ट हो चुका था — माया पूरी तरह से मुक्त नहीं हुई थी, बल्कि किसी माध्यम में प्रवेश कर चुकी थी। और वो माध्यम था – आरव।
उसने आत्मा के शाप को नहीं रोका, बल्कि स्वीकार कर लिया।
उसका मकसद अब और आत्माओं को जोड़ना था, ताकि दर्द की विरासत बनी रहे।
👁️अंतिम सत्र – Circle of Release
नेहा ने आखिरी बार एक "शुद्धिकरण यज्ञ" करने का निश्चय किया।
स्थान: वही पुराना जंगल
समय: रात 2:00 बजे
चरण: आत्मा को उसके माध्यम से बाहर निकालना।
नेहा: “माया, अगर तू अब भी इस शरीर में है, तो सुन — तेरी पीड़ा खत्म हो सकती है। छोड़ दे इसे!”
आरव (अजीब आवाज़ में): “आरव अब नहीं रहा… अब सिर्फ़ मैं हूँ।”
नेहा: “अगर तुझमें थोड़ी भी इंसानियत बची है, तो इस शरीर को छोड़ दे। तेरा बदला पूरा हो चुका है।”
आरव/माया: “मुझे बदला नहीं चाहिए था… मुझे याद रखा जाना था…”
🩸 बलिदान
आरव अचानक होश में आया। उसने नेहा की तरफ देखा और कहा:
“नेहा… ये मेरी लड़ाई है अब। अगर मैं बचा… तो इंसान बनकर लौटूंगा।”
उसने खुद को आग की लपटों में खड़ा कर दिया — ठीक वैसे ही जैसे माया जली थी।
चीखें गूंजीं — आरव की, माया की, हवेली की।
और फिर… सन्नाटा।
⏳ नया सूरज
सुबह जंगल शांत था। राख में केवल एक अधजली मोमबत्ती बची थी। नेहा ने उसे उठाया और देखा — उसपर लिखा था:
"मुक्ति"
🎬अंतिम मोड़
नेहा ने उस मोमबत्ती को दिल्ली में एक संग्रहालय को सौंप दिया।
लेकिन एक रात संग्रहालय में गार्ड ने रिपोर्ट किया:
“मैडम, हर रात ठीक 2 बजे ये मोमबत्ती अपने आप जल जाती है… कोई है जो अब भी लौटना चाहता है…”