एक हाथ जो दरवाज़े पर पड़ा था
शाम का समय था। गाँव बिजनापुर में ठंडी हवाओं के साथ डरावनी खामोशी छाई हुई थी। अचानक श्यामू नाम का एक दस साल का लड़का चिल्लाते हुए गाँव की ओर दौड़ा —
“बाबा! बाबा! ओ बाबा... वो देखो... वो... वो हाथ...!”
सभी लोग इकट्ठा हो गए। श्यामू काँपते हुए उन्हें गाँव के पुराने कुएं के पास ले गया। वहाँ, एक खून से सना हुआ कटा हुआ हाथ पड़ा था। हाथ अभी भी गरम लग रहा था — जैसे अभी-अभी किसी को मारा गया हो।
गाँव की पुरानी हवेली
गाँव के बुज़ुर्ग बाबा हरिदास ने आते ही कहा,
“ये हाथ... ये उसी हवेली से आया है। ठाकुर साहब की हवेली से... जहाँ 20 साल पहले उनकी बहू की रहस्यमयी मौत हुई थी।”
सबकी नजरें अब उसी हवेली की ओर मुड़ गईं। वो हवेली पिछले दो दशकों से बंद पड़ी थी। कोई उसमें गया नहीं था, लेकिन फिर भी अक्सर रात में वहां से चीखने की आवाज़ें आती थीं।
रहस्य की पहली परत
गाँव का नौजवान पत्रकार रघु, जो हाल ही में शहर से लौटा था, उसने तय किया कि वो इस रहस्य की जड़ तक जाएगा। उसी रात, वो अपने कैमरे और टॉर्च के साथ उस हवेली में गया।
दरवाज़ा आसानी से खुल गया — बिना किसी आवाज़ के। हवेली में गंध थी — खून और सड़े मांस की। दीवारों पर पुराने खून के धब्बे थे, और फर्श पर काले निशान, जैसे किसी को घसीटा गया हो।
उसी समय, उसे एक अलमारी के पीछे कुछ चमकता दिखा — एक पुराना डायरी।
डायरी का सच
डायरी में लिखा था:
“मैं, सावित्री, ठाकुर रणवीर की बहू... आज अगर मेरी मौत हो जाती है, तो उसका जिम्मेदार सिर्फ ठाकुर और उसका नौकर रामलाल होगा। उन्होंने मुझसे वो राज छीनना चाहा जिसे मैं बचा रही थी। वो राज... जो हवेली के तहखाने में छिपा है…”
रघु चौक पड़ा। हवेली में तहखाना?
उसी समय पीछे से किसी ने उसे धक्का दिया। वो गिरा, और सामने उसे वही कटा हुआ हाथ पड़ा दिखा — अब वो हिल रहा था।
तहखाने का द्वार
रघु ने साहस जुटाकर तहखाने का रास्ता खोजा। एक पुरानी तस्वीर के पीछे छुपा था एक छोटा दरवाज़ा। जैसे ही उसने उसे खोला, नीचे अंधेरा और सीढ़ियाँ थीं।
तहखाने में उतरते ही उसे सड़ी हुई लाशों की गंध आई। वहाँ दो कंकाल पड़े थे — एक महिला का, और एक पुरुष का। दीवार पर खून से लिखा था:
“ख़ून का बदला ख़ून...”
वहीं एक लकड़ी का संदूक रखा था। रघु ने जब उसे खोला, तो अंदर से एक पुराना लोहे का हाथ निकला — इंसानी हाथ जैसा, पर अंदर तकनीकी संरचना!
हाथ का रहस्य
रघु को समझ में आया कि ये सिर्फ कोई कटा हुआ हाथ नहीं था — यह एक जैविक हथियार था। ठाकुर रणवीर एक वैज्ञानिक था और वो इस हथियार को बनाकर बेचने वाला था। लेकिन जब सावित्री को इसका पता चला, तो उसने इसे छिपा दिया।
इसी हथियार की खोज में ठाकुर ने अपनी ही बहू को मार डाला। लेकिन मरते समय सावित्री ने हथियार को तहखाने में छिपा दिया।
हाथ की वापसी
रघु जैसे ही हथियार को लेकर तहखाने से निकला, हवेली के दरवाज़े अपने आप बंद हो गए। अब हवेली एक बार फिर ज़िंदा हो चुकी थी। दीवारों से खून टपकने लगा, और सावित्री की आत्मा सामने प्रकट हुई।
“उसने मुझे मारा... अब तू ही मेरे बदला ले...” — और वो हथियार रघु के हाथ में चला गया। अचानक, रघु की आंखें लाल हो गईं। अब उसमें अजीब सी ताक़त आ गई थी।
न्याय का अंत
रघु गाँव लौटा, लेकिन अब वो रघु नहीं था — वो हथियार के वश में था। उसने सबसे पहले रामलाल को मारा — ठीक वैसे ही जैसे सावित्री मरी थी।
फिर उसने ठाकुर रणवीर को खोजा — जो अब बूढ़ा हो चुका था, और एक आश्रम में छुपा हुआ था। रघु ने उसी हथियार से उसका गला रेत दिया।
गाँव वालों ने सुना, उस रात हवेली से आखिरी बार चीखने की आवाज़ आई। अगली सुबह हवेली पूरी तरह जल चुकी थी — और रघु गायब था।
आज का दिन
आज भी जब कोई बच्चा उस कुएं के पास जाता है, तो वो कहता है —
“माँ, मुझे वहाँ एक लाल आँखों वाला आदमी दिखा... उसके हाथ से खून टपक रहा था।”
गाँव वाले कहते हैं —
“जब भी अन्याय होगा... वो खून से सना हुआ हाथ फिर लौटेगा।”
Title: ख़ून से सना हुआ हाथ
Genre: Thriller, Suspense
Language: Hindi