शहर लखनऊ की धूल-धूसरित गलियों में एक 16 साल का लड़का रहता था—नाम था आरव। आरव को बचपन से ही तकनीकी चीज़ों से बड़ा लगाव था। उसका कमरा एक छोटी सी प्रयोगशाला की तरह लगता था—कहीं टूटे हुए मोबाइल के पुर्जे पड़े थे, कहीं सोल्डरिंग मशीन, कहीं वायरिंग, कहीं एक पुराना कंप्यूटर जिससे वह हर रात दुनिया की नई तकनीकों के बारे में पढ़ता।
.png)
एक दिन स्कूल में विज्ञान शिक्षक ने एक सवाल पूछा—
"इस दुनिया में कौन-सी तकनीक मानवता के लिए सबसे उपयोगी है?"
कक्षा में सबने उत्तर दिए—"कंप्यूटर", "मोबाइल फोन", "इंटरनेट", "AI", "रोबोट्स"—पर आरव चुप था। वह सवाल में खो गया। उसी रात उसने एक निर्णय लिया—वह इस सवाल का उत्तर पूरी दुनिया से खोजेगा।
यात्रा की शुरुआत
आरव ने एक पुराना लैपटॉप और अपने पापा का दिया 5 हज़ार रुपये लेकर एक वेबसाइट बनाई:
“Tech for Humanity”
वह लोगों से पूछने लगा—"आपकी ज़िंदगी में कौन-सी तकनीक ने सबसे बड़ा बदलाव लाया है?"
पहला जवाब एक किसान से आया—
"मुझे ड्रिप इरिगेशन ने आत्महत्या से बचा लिया।"
दूसरा जवाब एक डॉक्टर से आया—
"AI से बनी डायग्नोस्टिक मशीन ने मेरी माँ को कैंसर की शुरुआत में पहचान लिया।"
तीसरा जवाब एक स्कूल टीचर से—
"ऑनलाइन एजुकेशन ने गाँव के बच्चों को भी दुनिया से जोड़ दिया है।"
आरव की आंखों में चमक थी—पर जवाब अभी अधूरा था।
भविष्य की खिड़की
आरव को भारत सरकार से एक निमंत्रण आया—“स्टूडेंट्स ऑफ फ्यूचर” सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए। वहाँ उसे पहली बार मिला डॉ. आयुष मेहता से—एक प्रसिद्ध रोबोटिक साइंटिस्ट।
डॉ. मेहता ने कहा,
"आरव, तकनीक तब तक बेहतरीन नहीं जब तक वह अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को सशक्त न करे। एक तकनीक जिसने मेरी माँ को बोलने लायक बनाया, वह 'न्यूरल कम्युनिकेशन डिवाइस' थी।"
यह सुन आरव को झटका लगा। तकनीक सिर्फ मोबाइल और कंप्यूटर नहीं, भावनाओं को भी जुड़ने की शक्ति देती है—यह वह पहली बार समझा।
चिप की दुनिया
आरव अब अमेरिका के MIT से आमंत्रित हुआ। वहाँ एक प्रयोगशाला में उसने देखा कि कैसे ब्रेन चिप्स के ज़रिए लकवाग्रस्त व्यक्ति चल सकता है, कैसे बायोनिक आँखें अंधों को रोशनी दे सकती हैं।
पर उसी प्रयोगशाला में उसने देखा कि कैसे कुछ लोग इन चिप्स का इस्तेमाल लोगों के विचार पढ़ने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए कर रहे थे।
तभी उसे अहसास हुआ—"तकनीक एक तलवार की तरह है—यह बचा भी सकती है, और मार भी सकती है।"
तकनीक बनाम इंसानियत
एक दिन आरव के दोस्त रिहान की माँ को दिल का दौरा पड़ा। वह हॉस्पिटल में थी। डॉक्टर बोले,
"हमारे पास एक AI-सर्जन है। यह 99.99% सटीक है।"
आरव ने कहा,
"क्या इंसान का दिल सिर्फ मशीन से जोड़ा जा सकता है?"
डॉक्टर मुस्कुराया—"मशीन ऑपरेशन कर सकती है, पर उसकी देखभाल अब भी इंसान को करनी है।"
निष्कर्ष
कई वर्षों की यात्रा के बाद, आरव ने एक किताब लिखी:
"तकनीक तब तक अच्छी है जब तक वह इंसान को इंसान बनाए रखे।"
वह किताब UN में प्रस्तुत हुई। उसमें उसने लिखा:
"सर्वश्रेष्ठ तकनीक वह है जो –
गरीब की फसल बचाए,
मरीज को जीवन दे,
बच्चे को शिक्षा दे,
और सबसे महत्वपूर्ण – इंसान के भीतर की संवेदनाओं को मिटने न दे।
तकनीक का लक्ष्य मानवता की सेवा होना चाहिए, नियंत्रण नहीं।"**
एक नई शुरुआत
आज आरव खुद एक वैज्ञानिक है। उसकी कंपनी "HumanCore Tech" दुनिया की ऐसी तकनीकें बनाती है जो—
-
दृष्टिहीनों को सुनने में सक्षम बनाए,
-
किसानों को जलवायु पूर्वानुमान दे,
-
बुजुर्गों को अकेलापन महसूस न होने दे।
उसके ऑफिस की दीवार पर एक वाक्य लिखा है: